(9 of 2021)
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'भैरवी' शिवानी द्वारा ft. रूढ़िवादी मानसिकता
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शिवानी 'गौरा' पंत मेरी पसंदीदा लेखिकाओं में से एक हैं। उनकी कहानियों में व्याप्त सादगी और पहाड़ी जीवन का पुट, ख़ासकर आजकल की लेखनी में, सहज ही देखने नहीं मिलता। परन्तु, चाहे तुच्छ ही सही, एक समीक्षक होने के नाते किसी रचना में दिखे दोषों की बात करना भी उतना ही ज़रूरी है जितना कि उसके गुणों का। इन्ही की कृतियों की समीक्षा की श्रृंखला में इस बार की पुस्तक है भैरवी। 122 पृष्ठों में अपनी कहानी कहने वाली इस पुस्तिका को नावेल के बजाय नावलेट कहना उचित होगा।
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भैरवी कहानी है चन्दन की - जिसका (लेखिका की नज़र में) अभूतपूर्व सौंदर्य ही उसका एकमात्र गुण है। कैसे यह सुंदरता उसे सफलता के चरम सोपान से लेकर पीड़ा के गर्त तक ले जाती है, कहानी इसी बारे में है। शाहजहांपुर में पली-बढ़ी चन्दन का अल्मोड़ा से धारचूला और फिर महानगरी तक का सफर बड़े मनोरंजक ढंग से बयान किआ गया है, पर उसके बाद, शाही ठाठबाठ से सन्यासिनी बनने की कहानी ये सोचने पर मजबूर करती है की क्यों कई बार समाज की कुरूपता का खामियाज़ा एक स्त्री को भुगतना पड़ता है। स्पॉइलर के डर से कुछ ज़रूरी घटनाओं के उल्लेख करने से गुरेज़ करते हुए, एकबारगी इस किताब को पढ़ने की सिफारिश आपसे ज़रूर करुँगी। लेकिन हाँ, कहानी के निष्कर्ष के बारे में आपकी टिप्पणी जानने को आतुर रहूंगी।
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मैं इसे एक प्रिविलेज ही कहूँगी जो हम उस समय में हैं जहाँ हम खुलकर मानवाधिकार और नारी के अधिकारों के बारे में बात कर सकते हैं। चाहे आज भी औरत का शोषण पूरी तरह से ख़त्म नहीं हुआ, पर प्राय ही इसे हेय दृष्टि से देखे जाना भी सामाजिक प्रगति का प्रतीक है। शायद जिस वक्त यह किताब लिखी गई, तब इतनी सुधि न होने से ये कहानी आज, मुझ जैसे, आपको भी अप्रासंगिक या अन्यायपूर्ण लगे लेकिन बात करना ज़रूरी है।
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धारचूला के खूबसूरत विवरण और शौक संस्कृति के दुर्लभ विवरण के लिए इस नावलेट को मै दूंगी 3.5/5
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आप क्या सोचते हैं यह जानने का इंतज़ार रहेगा। बताइएगा ज़रूर..
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