"अतिथि" शिवानी द्वारा ft. शरद की शर्मीली शाम
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अक्टूबर का पतझड़ी मास आधे से ज़्यादा गुज़र चुका है और मेरी एलेक्सा पर एंडी विलियम्स निरंतर बज रहा है। शायद पतझड़ के मौसम की लाल उदासी ही उसे खूबसूरत बनाती है। भारतीय त्योहारों के मौसम का पाश्चात्य हैलोवीन और फॉल से मिलन अटपटा लग सकता है, पर बेमेल कभी नहीं। मैं हर मौसम, हर अनुभूति मनाने का लोभ संवरण नहीं कर पाती। जैसे शिवानी के इस उपन्यास के किरदार - भिन्न पर बेमेल नहीं लगते, जिगसॉ के टुकड़ों जैसे अन्तः साथ आकर कहानी संपूर्ण कर ही जाते हैं।
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अतिथि एक नारी-केंद्रित कहानी है। कहानी की नायिका जया अंडरडॉग थीम की लीक पर एक अत्यंत अमीर और राजनीतिक खानदान के बिगड़े सुदर्शन पुत्र कार्तिक का रिश्ता पा जाती है। महत्वकांक्षी जया के साथ ऐसा क्या घटता है की ऐसी स्थिति के बाद भी उसका संघर्ष जारी रहता है, यही कहानी है।
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कहानी कहीं आपको सास-बहू धारावाहिक की कमी पूरी करती नज़र आएगी और कभी नारी-प्रधान पुट पर चलती। कहानी के कुछ प्रसंग मुझे मेरे प्रिय पाकिस्तानी धारावाहिक जिसे मैंने काफी वर्ष पहले देखा था की याद दिला गए - नाम नहीं लूंगी और अंदाज़ लगाने का काम छोडूंगी आप पर ताकि जिज्ञासा बनी रहे। कोई पढ़े तो ज़रूर बताये की कहानी का आखिरी दृश्य हूबहू किस पाकिस्तानी धरावाहिक जैसा लगा।
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चुस्त कहानी, हर पात्र को बिलकुल यथार्थ से पेश करने की लिए, कहानी के मनोरंजक किरदारों और अंत में नायिका को सशक्त दिखाने के सफर के लिए इस कृति को मैं दूंगी 4/5 🌠
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