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Showing posts from October, 2021

"चौदह फेरे" शिवानी द्वारा

 "चौदह फेरे" शिवानी द्वारा  📚  शिवानी की लेखन विधि में उपन्यास को मैं उनका श्रेष्ठतम कौशल कहूँगी। इस विधा की शिवानी कृतियां मुझे सबसे प्रिय हैं। इसलिए अपना वार्षिक किताबी लक्ष्य ख़तम करके "लैज़र रीडिंग" हित मैंने अनायास ही शिवानी जी के दो उपन्यास उठा लिए| इस साल गल्प अधिक पढ़ लेने के कारण मेरी अगली कोशिश होगी कुछ नॉन-फिक्शन पढ़ने की।  📚  बहरहाल, "चौदह फेरे" की बात करते हुए बताना चाहूंगी कि यह कृति पहले-पहल उपन्यास रूप में प्रकाशित न होकर 'धर्मयुग' साप्ताहिक पत्रिका में लड़ीवार रूप में छपी थी। किताब के शुरू में मृणाल पण्डे द्वारा दिए परिचय ज़ाहिर करता है कि यह श्रृंखला उस समय के पाठकगणों में इतनी लोकप्रिय हो गई कि कहानी की नायिका अहल्या के भविष्य को लेकर अक्सर ही कॉलेज छात्राओं और गृहिणियों द्वारा अनुमान और कयास लगाए जाते थे। लेखनी में लोकतंत्र के एक अनूठे प्रदर्शन की मिसाल यह है की मृणाल द्वारा शिवानी जी को पाठकों की इच्छा से मुखातिब करवाते हुए उन्ही ने कहानी को दुखांत के बदले सुखांत से संपन्न करने का विनय किया था, जो (स्पॉइलर अलर्ट!) लेखिका ने माना भ

"अतिथि" शिवानी द्वारा ft. शरद की शर्मीली शाम

  "अतिथि" शिवानी द्वारा ft. शरद की शर्मीली शाम  🍁 अक्टूबर का पतझड़ी मास आधे से ज़्यादा गुज़र चुका है और मेरी एलेक्सा पर एंडी विलियम्स निरंतर बज रहा है। शायद पतझड़ के मौसम की लाल उदासी ही उसे खूबसूरत बनाती है। भारतीय त्योहारों के मौसम का पाश्चात्य हैलोवीन और फॉल से मिलन अटपटा लग सकता है, पर बेमेल कभी नहीं। मैं हर मौसम, हर अनुभूति मनाने का लोभ संवरण नहीं कर पाती। जैसे शिवानी के इस उपन्यास के किरदार - भिन्न पर बेमेल नहीं लगते, जिगसॉ के टुकड़ों जैसे अन्तः साथ आकर कहानी संपूर्ण कर ही जाते हैं। 🍁 अतिथि एक नारी-केंद्रित कहानी है। कहानी की नायिका जया अंडरडॉग थीम की लीक पर एक अत्यंत अमीर और राजनीतिक खानदान के बिगड़े सुदर्शन पुत्र कार्तिक का रिश्ता पा जाती है। महत्वकांक्षी जया के साथ ऐसा क्या घटता है की ऐसी स्थिति के बाद भी उसका संघर्ष जारी रहता है, यही कहानी है। 🍁 कहानी कहीं आपको सास-बहू धारावाहिक की कमी पूरी करती नज़र आएगी और कभी नारी-प्रधान पुट पर चलती। कहानी के कुछ प्रसंग मुझे मेरे प्रिय पाकिस्तानी धारावाहिक जिसे मैंने काफी वर्ष पहले देखा था की याद दिला गए - नाम नहीं लूंगी और अंदाज़ लगा