"चौदह फेरे" शिवानी द्वारा 📚 शिवानी की लेखन विधि में उपन्यास को मैं उनका श्रेष्ठतम कौशल कहूँगी। इस विधा की शिवानी कृतियां मुझे सबसे प्रिय हैं। इसलिए अपना वार्षिक किताबी लक्ष्य ख़तम करके "लैज़र रीडिंग" हित मैंने अनायास ही शिवानी जी के दो उपन्यास उठा लिए| इस साल गल्प अधिक पढ़ लेने के कारण मेरी अगली कोशिश होगी कुछ नॉन-फिक्शन पढ़ने की। 📚 बहरहाल, "चौदह फेरे" की बात करते हुए बताना चाहूंगी कि यह कृति पहले-पहल उपन्यास रूप में प्रकाशित न होकर 'धर्मयुग' साप्ताहिक पत्रिका में लड़ीवार रूप में छपी थी। किताब के शुरू में मृणाल पण्डे द्वारा दिए परिचय ज़ाहिर करता है कि यह श्रृंखला उस समय के पाठकगणों में इतनी लोकप्रिय हो गई कि कहानी की नायिका अहल्या के भविष्य को लेकर अक्सर ही कॉलेज छात्राओं और गृहिणियों द्वारा अनुमान और कयास लगाए जाते थे। लेखनी में लोकतंत्र के एक अनूठे प्रदर्शन की मिसाल यह है की मृणाल द्वारा शिवानी जी को पाठकों की इच्छा से मुखातिब करवाते हुए उन्ही ने कहानी को दुखांत के बदले सुखांत से संपन्न करने का विनय किया था, जो (स्पॉइलर अलर्ट!) लेखिका ने माना भ...