(5 of 2021)
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'अपराधी कौन' शिवानी द्वारा ft. मेरा योगामैट 😁
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कहानी कहना एक कला है, और हर लेखक इसे अपने तरीके से कहता है. कुछ लेखक बड़े जटिल, घुमावदार और डार्क ढंग से और कुछ बड़े सरल, सीधे और स्पष्ट ढंग से. शिवानी मेरी मनपसन्द लेखिका हैं और लेखकों के इस दूसरे वर्ग से आती हैं.
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पहाड़ी अंचल से नाता रखने वाली शिवानी की कहानियों में पहाड़ी देहातों ही सी ताज़गी, सादगी और गहराई देखने मिलती है. जब अपनी कहानी 'अलख माई' में निम्न पंक्तियों का उल्लेख करती हैं, तो पाठक को भी अपने साथ उस पहाड़ी बेर वृक्ष के नीचे खींच लाती हैं -
"बेर पाको बारोमासा
आहा काफ़ल पाको चैता
मेरी छैला"
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राधाकृष्ण प्रकाशन दुआरा छपी "अपराधी कौन" लघु कहानियों का संग्रह है जिसमें से अधिकतर कहानियां कारागृह से हैं. 'जा रे एकाकी', 'छि: मम्मी, तुम गंदी हो', 'साधो, ई मुर्दन के गाँव' और 'अलख माई' कहानियां विभिन्न पृष्ठभूमि के बंदी और बंदिनियों (मुख्यतः) की कहानियां हैं. जेल चाहे सलाखों की हो या मन की, कैसी किसी व्यक्ति की इच्छाशक्ति के साथ उसकी उमंगों को भी तोड़ने में परस्पर यत्नशील रहती हैं. परंतु जीवन रूपी हठी बेल जैसे शिलाओं में भी जड़ें बना ही लेता है, ठीक वैसे कारागार में दर्पण के अभाव में पानी से भरी बाल्टी में ही अपनी छवि देखकर नेत्र-अंजन सुधारतीं बंदिनियां उम्मीद दे जाती हैं.
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'अपराधी कौन' ननद-भाभी के जीवनपर्यंत शीतयुद्ध की बड़ी रोचक दास्तान है, पर संग्रह की आखिरी रत्ना 'चांद', जो कि इसी नाम की एक लड़की और लेखिका की सहेली मानवी शुक्ला का किस्सा है, आपको अंत तक बांधे रखेगी.
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तीन दिनों में खत्म होने वाली यह लघु किताब हिन्दी के पाठकों के लिए बेहतरीन तोहफ़ा है. भाषा थोड़े परिपक्व हिंदीभाषियों के लिए ही उपयुक्त रहेगी, अन्यथा कोष तो है ही.
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इसी के साथ इस पुस्तक को मैं दूंगी 4.5/5.
अगर आप हिन्दी गद्य में रुचि रखते हैं, तो इसे ज़रूर मौका दीजियेगा.
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